Poetry is that ointment, which I rub every day on my injury.
Poetry is one last hiccup; born on the lips of a dying poet.
प्यास ऐसी थी कि मैं सारा समुंदर पी गयापर मिरे होंटों के ये दोनों किनारे जल गए
नींद आए तो कुछ सुराग़ मिलेकौन है दफ़्न मेरे ख़्वाबों में
मैं तिरे जिस्म के जब पार निकल जाऊँगावस्ल की रात बड़ी ग़ौर-तलब होगी वो
मैं अपने दरमियाँ से हट चुका हूँतो फिर क्या दरमियाँ रक्खा हुआ है
जिन से मिलना न हुआ उन से बिछड़ कर रोएहम तो आँखों की हर इक हद से गुज़र कर रोए
एक तस्वीर बनाई है ख़यालों ने अभीऔर तस्वीर से इक शख़्स निकल आया है
एक किरदार नया रोज़ जिया करता हूँमुझ को शाएर न कहो एक अदाकार हूँ मैं
जब मैं बाहर से बड़ा सख़्त नज़र आऊँगा तुम समझना कि मैं अंदर से बहुत टूटा हूँ